teporting by.Soofi.Nooruddin.Kamli
हज़रत अबु तालिब रदिअल्लाहोअन्हो और अबु लहब
अहले हक़ ग़ौर फरमाएं 👇
ईद मिलादुन्नबी की महफ़िल में कसरत से एक वाक़्या सुनाया जाता है "अबु लहब ने हुज़ूर की विलादत ब-सआदत के मौक़े पर ख़ुशी का इज़हारे करते हुए अपनी कनीज़ को आज़ाद कर दिया था अल्लाह ने इसका अज्र ये अता किया कि हर पीर के दिन अबु लहब के अज़ाब में कमी कर दी जाती है और "12 रबीउन्नूर (रबीउल अव्वल) को पूरा अज़ाब उस दिन भर के लिए ख़त्म कर दिया जाता है और उसकी उस ऊँगली जिससे उसने इशारा कर के कनीज़ आज़ाद की थी उस ऊँगली से मीठा पानी जारी होता है और वो उससे सेराब होता है"
एक सवाल अहले नज़र से 👇
" अबु लहब खुला काफ़िर क़ुरआन ए मुक़द्दस में जिसकी मज़म्मत फ़रमाई गई ऐसा काफ़िर अगर हुज़ूर की विलादत पर ख़ुशी मनाए और कनीज़ आज़ाद करे तो उसे अल्लाह अज्र अता करे
"और हज़रते अबु तालिब जिन्होंने हुज़ूर की परवरिश की अपनी औलादों से ज़्यादा हुज़ूर से मोहब्बत की, हुज़ूर की हिमायत की,हुज़ूर की हिफाज़त की,अपने बच्चों को क़ुर्बान कर दिया"
☝ सवाल ये की जनाबे हज़रते अबु तालिब को इसके बदले क्या अज्र मिलेगा ?
क्या ऐसे शख़्स का दिल नेमते उज़्मा(ईमान) से खाली रहेगा ??
क्या उन्हें काफ़िर कहने पर ज़बान नही लड़खड़ायेगी ???
ईमानदारी से सोचना और अपनी इस्लाह करना !